एक और रोज वो आखिरी परिंदा भी उड़ गया, रह गई पीछे तो बस एक सूखी शाख शाख से गिरे पत्ते और पत्तों के जालिकावत शिरा-विन्यास..... इन सबके बीच बच गया थोड़ा मैं बच गयी थोड़ी तुम और बच गया हमारे बीच एक ठहराव, मैं रोज़ उस ठहराव मे कंकड़ फेकता हूँ, ताकि किसी रोज पैदा हो लहर और बदले हमारे आस-पास की आबोहवा..... एक रोज आरामकुर्सी पर बैठ मैं ये कहानी अपनी संतति को दूंगा । । ...