नब्बे के दशक मे कोसल के पिपरहवा, बस्ती, अयोध्या एवं नैमिषारण्य क्षेत्र के खनित से कतिपय मिट्टी कीकई नारी मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। ऐसी ही 05 मृण्य मूर्तियों का संग्रह अयोध्या मे का.सु. साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पूर्व प्राध्यापक डॉ. आर.एस. कनौजिया के पास आज भी सुरक्षित है।
प्रथम नारी प्रतिमा की ऊंचाई 19.5 सेमी है। इसका ललाट उभरा हुआ है। दायें कान मे कुंडल हैं। दोनों स्तन बड़े बड़े हैं। बायाँ कान और हाथ टूटा हुआ है। स्तन से सिमटा 05 सेमी लंबा एक बच्चा भी चित्रित है। दायें पैर की टूटी हुई एड़ी पर नारी ने हाथ रखा है। उसके हाथ की लंबाई 10 सेमी है। बायाँ हाथ और एड़ियाँ टूटी हुई हैं। दोनों भुजाओं को जोड़ते हुए तथा स्तनों के ठीक ऊपर गले का आभूषण है। प्रतिमा की संरचना से विदित होता है किकलाकार ने प्रथमतः सिलिन्डर बनाया होगा तत्पश्चात सिलिन्डर कि आधारशिला पर विभिन्न अंगों को जोड़-जोड़ कर बनाया होगा। अंततः उसे आँवा मे पकाया गया होगा। प्रतिमा के निचले टूटे हुए भाग के अवलोकन से विदित होता है कि प्रतिमा खूब पकाई गई थी। यही कारण है कि खंडित भाग मे श्यामलता का दर्शन होता है। इस प्रकार की प्रतिमाएँ प्रो. के.एम. श्रीवास्तव, भूतपूर्व डायरेक्टर, आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली को पिपरहवा, गनवरिया के पुरातात्विक सर्वेक्षण मे उपलब्ध हुई थीं। पुरातत्ववेत्ता प्रो. लाल ने अयोध्या के उत्खनन मे भी इस कोटी की नारी मूर्तियाँ प्राप्त की थीं। उक्त विद्वानों के अभिमत से इस प्रकार की मूर्तियाँ हरीति देवी की हैं जो कुषाण काल से सम्बन्ध रखती हैं।
द्वितीय नारी प्रतिमा 17 सेमी ऊंची है। इसका आंतरिक भाग खोखला है। बायें स्तन से बिल्कुल लिपटा हुआ 4 सेमी लंबा बच्चा है। नारी ने नासिका के बिल्कुल ऊपर भाल प्रदेश पर त्रिपुंड लगाया है। कलाकार ने भौहों को बहुत बारीकी से बनाया है। त्रिपुंड के ऊपर दो रेखाएं हैं। नारी ने गले मे एक हार पहना है। प्रतिमा का बायाँ हाथ टूटा हुआ है जब कि दाहिना हाथ कमर पर है।
तृतीय मृण्य नारी मूर्ति की ऊंचाई भी 17 सेमी है। नारी ध्यानावस्था मे चित्रित है। यह प्रतिमा प्रथम नारी प्रतिमा जैसी ही है। प्रथम प्रतिमा से विपरीत इसका दाहिना हाथ टूटा हुआ है।
चौथी नारी प्रतिमा 23.5 सेमी ऊंची है जो अंदर से पूरी तरह खोखली है। बायाँ हाथ वस्त्राभरण कटिप्रांत पर टीका है। नारी शांत मुद्रा मे है। उसके बायें स्तन से लिपटा हुआ 05 सेमी लम्बा एक शिशु है। नारी के गले मे हार है। बायाँ पैर एड़ी से युक्त है। दाहिने पैर का घुटनों से नीचे का भाग खंडित है। द्वितीय प्रतिमा की भांति नारी ने नासिका के बिल्कुल ऊपर भाल प्रदेश पर त्रिपुंड लगाया है जिसके ऊपर दो रेखाएं हैं।
पाँचवी नारी प्रतिमा शीश विहीन है इसकी ऊंचाई 18.5 सेमी है। उसके बाएँ स्तन पर 5.5 सेमी लम्बा शिशु सिमटा हुआ है। बायीं भुजा मुड़कर उस शिशु के बिल्कुल नीचे चित्रित है। दाहिने हाथ के पंजे मात्र ही शेष बचे है। शरीर पर लबादा जैसा धारण किया है। लबादे के नीचे दोनों पैरों को कलावंत से सँजोया गया है। डॉ. कुमारी शशिप्रभा अस्थाना, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली इसे नारी देवता के रूप मे स्वीकार करती हैं।
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कोसल की मृण्मयी नारी मूर्तियाँ |
उपरोक्त सभी प्रतिमाओं के अध्ययन से विदित होता है कि ये मूर्तियाँ निश्चित रूप से हरीति देवी की हैं। इनका काल कुषाण काल है। इस प्रतिस्थापना की पुष्टि लाल किला, नई दिल्ली मे सुरक्षित पिपरहवा क्षेत्र की नारी प्रतिमाओं से की जा सकती है।