जब बुद्ध ग्रह (मर्करी) सूर्य तथा पृथ्वी के मध्य से गुजरता है तो वह सूर्य की डिस्क पर एक काले बिन्दु के रूप मे दिखाई देता है। इसे घटना को ही बुद्ध परागमन कहते हैं। अंग्रेजी मे इसे Transit of Mercury कहा जाता है। इसकी तुलना 06 जून, 2012 मे पड़े
वीनस ट्रांज़िट से की जा सकती है। इसे सर्वप्रथम फ्रेंच खगोलशास्त्री पियरे गैसेंडी ने 07 नवम्बर, 1631 मे देखा था। हालांकि इस घटना का सटीक अनुमान केपलर साहब ने पहले ही लगा लिया था परन्तु इसे देखने के लिए वे जीवित नहीं रहे। एक सदी मे इस प्रकार के लगभग 13-14 मर्करी ट्रांजिट पड़ते हैं। यह संख्या वीनस ट्रांजिट की तुलना मे कहीं अधिक है इसका कारण मर्करी का सूर्य से अपेक्षाकृत पास होना है। इस सदी के कुल 14 ट्रांजिट मे से अब तक केवल 02 ट्रांसिट (07 मई, 2003; 08 नवम्बर, 2006) ही हुए हैं जब कि 12 मर्करी ट्रांजिट होने शेष हैं जिनकी तिथियां इस प्रकार हैं-
09 मई, 2016;
11 नवम्बर, 2019; 13 नवम्बर, 2032; 07 नवम्बर, 2039; 07 मई, 2049; 09
नवम्बर, 2052; 10 मई, 2062; 11 नवम्बर, 2065; 14 नवम्बर, 2078; 07 नवम्बर,
2085; 08 मई, 2095 तथा 10 नवम्बर, 2098। विगत 10 वर्षों में यह पहला मौका है जब हम आज (09 मई, 2016) इस घटना के साक्षी बन रहे है। इसके बाद अगला ट्रांजिट 11 नवम्बर, 2019 को होगा लेकिन भारत में सूर्यास्त होने की वजह ये नहीं दिखेगा। भारत मे यह नजारा 16 वर्षों बाद 13 नवम्बर, 2032 को ही देखा जा सकेगा। विश्वपटल पर 09 मई, 2016 को पड़ने वाले ट्रांजिट की स्थिति को निम्न मानचित्र द्वारा समझा जा सकता है।
ज्योतिष मे मर्करी ट्रांजिट के महत्व के संदर्भ में पंडित श्री कामेश मणि पाठक कहते हैं कि सूर्य तथा पृथ्वी के मध्य बुद्ध ग्रह का कुछ समय के लिए आना आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण दोष माना जा सकता है परन्तु सामाजिक मान्यता मे इसका कोई सर्वमान्य प्रभाव नहीं है। बहरहाल, मर्करी ट्रांजिट को देखने के लिए हमे सबसे पहले एक ऐसी जगह का चुनाव करना
था जहां से सूर्यास्त के दौरान बिना किसी अवरोध के सूर्य को देखा जा सके।
यह हमारे जेहन मे था कि पिछली बार नीम के पेड़ की वजह से हम वीनस ट्रांजिट
के प्रारम्भिक क्षणों को नहीं देख पाये थे। सो इस बार हमने यह गलती न
दोहराने का निश्चय किया। इसके लिए हमें ऐसी जगह चाहिए थी जो शहर से
दूर तथा ऊंचाई पर स्थित हो। मणिपर्वत इस प्रयोजन के लिए सर्वश्रेष्ठ जगह थी
सो हमने वहीं पर अपने उपकरण समायोजित करने का निर्णय लिया।चूँकि ट्रांज़िट 4:41 पी एम पर शुरू होना था इसलिए हम लोग 4:30 पी एम पर ही मणिपर्वत पहुँच गए। इस समय सूर्य मे अधिक चमक होने के कारण Nikon P-510 कैमरे से ट्रांज़िट देखना
संभव नहीं था सो हमने टेलिस्कोप के द्वारा पर्दे पर प्रतिबिम्ब प्रक्षेपित
करके ट्रांज़िट को देखा। हमारे साथ मणिपर्वत घूमने आए कुछ अन्य मेहमान भी
जुड़े और उन्होने भी इस घटना का आनंद लिया।
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मर्करी ट्रांज़िट के दौरान महेश, विकास, शौर्य (गोद मे), सुशील, लावान्या, शल्या तथा दो अन्य मेहमान (बायें से दायें) |
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मेरे साथ विकास, सुशील और महेश बुद्ध परागमन को देखते हुए |
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सिद्धार्थ बुद्ध परागमन की तस्वीरें लेते हुए |
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मणिपर्वत से बुद्ध परागमन की प्रथम तस्वीर (09-05-2016; 6:05 पी एम) |
जैसे-जैसे शाम ढलती गई, सूर्य की चमक में भी कमी होती चली गई। ऐसे मे सिद्धार्थ का Nikon P-510 कैमरा बड़ा काम आया। उन्होने इससे ट्रांज़िट की कुछ बेहतर तस्वीरे हासिल कीं। ट्रांज़िट की पहली तस्वीर हमे 6:05 पी एम पर प्राप्त हुईं। हम सभी ने कैमरे की डिजिटल स्क्रीन पर भी इस ट्रांज़िट को देखा। कुल मिलाकर हम सभी इस अनूठी घटना के साक्षी बने।
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