अब उसकी
झील सी नीली आँखों में,
ख्वाब नहीं पलते है,
और न ही उसके
अल्हड़ से दिल में
अरमान पनपते है,
अब न तो उसका
चंचल मन आँगन में
फुदकता है,
और न ही
उसका चटोरापन
आम के अचार को
तरसता है,
अब बारिश में
वह मेरे संग
नाव नहीं चलाती है,
और न ही
कोयल बन
मीठे गीत गाती है,
अब उसकी खुशियों पर
लम्बी अमावस है,
और तिस पर भी
मेरा आला खामोश है.
- सिद्धांत (मार्च १३,२०१२ १:१० पी एम)
Copyright ©
0 comments:
Post a Comment