एक रोज़
जो तुमने कहा
था
कि फबते नहीं
रंग तुम पर,
बस उसी रोज से
रंगों से मेरी
अनबन है।
अब एक मैं हूँ
तुम हो और
स्याह सब कुछ,
रात
मेरी कविताओं के
जंगल से
डरावनी आवाज़े आती हैं॥
- सिद्धांत
जून 20, 2013
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