जब शुक्र ग्रह पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है, तब वह सूर्य की डिस्क पर एक काले बिंदु के रूप मेंदिखाई देता है इसे ही ट्रांजिट ऑफ़ वीनस कहते है। दूरबीन का आविष्कार के बाद अब तक इस तरह की केवल आठ घटनाये (1631, 1639, 1761, 1769, 1874, 1882, 2004 तथा 2012) ही हुई है जो इसे दुर्लभ बनाती है। इस खगोलीय घटना का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि इसी आधार पर पहली बार प्रमाणिक तौर पर पृथ्वी से शुक्र सहित सूर्य से पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों कि दूरियों का शुद्धता से आकलन किया गया और सौर-मंडल के विस्तार को समझा जा सका। 06 जून, 2012 के बाद यह खगोलीय घटना अब 105 वर्षो के बाद 11 दिसम्बर, 2117 में ही देखने को मिलेगी।
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मेरे टेलिस्कोप द्वारा ली गई वीनस ट्रांजिट का पहली तस्वीर
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इस अनूठी खगोलीय घटना को देखने के लिए मैंने सबसे पहले पर्याप्त क्षमता का एक टेलिस्कोप तैयार किया। इस टेलिस्कोप की सहायता से कई खगोलीय पिंड जैसे बुद्ध, शुक्र की कलाएं, मंगल, ब्रहस्पति ग्रह समेत उसके उपग्रह, शनि के वलय, चन्द्रमा के क्रेटर एवं पहाड़ समेत कई अन्य तारे देखे जा सकते थे। वीनस ट्रांसिट को देखने के लिए अब मेरे पास दो रास्ते थे। पहला ये कि मैं टेलिस्कोप द्वारा सूर्य का एक प्रतिबिम्ब किसी पर्दे पर प्रक्षेपित करूँ या फिर किसी कैमरे (नोकिया-7230 मोबाइल कैमरा) को टेलिस्कोप की आई -पीस से जोड़कर ट्रांसिट के प्रतिबिम्ब हासिल करूँ । अंततः मैंने दोनों ही उपायों को अपनाने का निश्चय किया।
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अयोध्या में वीनस ट्रांजिट का अदभुत नज़ारा
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06 जून की सुबह 4 बजकर 45 मिनट से ही मैंने अपने सभी उपकरणों को भली प्रकार समायोजित करना शुरू किया। तकरीबन 5:00 बजते-बजते मेरे कुछ मित्र (अलकेश, दिलीप तथा कामेश) भी मेरे साथ जुड़ गये। हालांकि अयोध्या में सूर्य उदय तो 05:26 पर ही हो गया था परन्तु नीम के पेड़ों की वजह से हम सभी ट्रांजिट के प्रारंभिक क्षणों को नहीं देख पाये। लेकिन कोई 02 मिनट के बाद 5 बजकर 28 मिनट पर हमने पेड़ों के पीछे से झांकते सूर्य की ट्रांजिट के साथ पहली तस्वीरे हासिल कीं। परन्तु लम्बे समय तक हम ऐसा नहीं कर सके। जैसे -जैसे दिन चढ़ता गया सूर्य की चमक में वृद्धि होती गई। चूंकि हमारे पास इस चमक कों कम करने के लिए कोई भी फिल्टर मौजूद नहीं था नतीजतन 5 बजकर 40 मिनट के बाद हमारे द्वारा खींची गई किसी भी तस्वीर में हम शुक्र ग्रह की छवि नहीं देख पाए। ऐसे में परदे पर सूर्य के प्रतिबिम्ब को प्रक्षेपित करने की हमारी युक्ति काम आई जिसके फलस्वरूप हमने ना सिर्फ वीनस ट्रांजिट को अंत तक देखा बल्कि उसकी तस्वीरें उतारने में कामयाब भी रहे। यह हम सब के लिए एक कभी न भूलने वाला अनुभव था।
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