300x250 AD TOP

Followers

Blog Archive

Popular Posts

Featured slider

Monday 20 February 2012

Tagged under:

संवहन बण्डल







जो मुझमे
संवहन बण्डल
होते 
तो मैं भी 
प्रेषित कर पाता 
तुम तक 
अपनी संवेदनाएं  
जस की तस, 
और बता पाता 
रिक्सिया 
और 
मार्केन्शिया 
होने का दर्द 
जो मुझमे
संवहन बण्डल
होते 
तो मैं 
संचयित कर लेता
तुम्हारे ताप को
खुद में
और
उस  ताप से
प्रकाशित होता
कई बार 
जो मुझमे
संवहन बण्डल
होते 
तो मैं भी.........
                               - सिद्धांत 

Saturday 18 February 2012

Tagged under:

नियति

एक झूठ,
एक मरीचिका,
एक ख्वाब,
एक छलावा,
तुम हो,
खोकर जिसमे
सब कुछ
लुट जाना ही,
खोकर खुद को,
खुद से,
गुम जाना ही,
यही नियति है 
अब न स्पंदन है,
न दिल में धड़कन है,
बस  नीर लिए
लोचन में,
जिन्दा लाश
बना बैठा हूँ
तुमको आज
गँवा बैठा हूँ  I
                                                  -सिद्धांत 

Tuesday 14 February 2012

Tagged under:

ओजोन की पर्त







ओजोन की पर्त
फट रही है,
उसको बनवाइए
पांच-छ:
मिस्त्री लेकर
जल्द पहुँच जाइये,
न जा पाइये
तो मेरा यान
ले जाइये,
उसमे
कुछ बोरी
सीमेंट
ले जाइये,
पर पर्त
जल्द से जल्द
बनवाइए  I 
नहीं बनवाइयेगा   
तो पर्त फट जाएगी
पर्त फट जाएगी
तो गैसे बहुत आयेगी
गैसें अगर आई
तो सब मर जायेगे
इसलिए तो
कहता हूँ
कि पर्त
जल्द से जल्द
बनवाइए II   
               - सिद्धांत (मेरी प्रथम रचना, 1991)
Tagged under:

माँ








मैं,
मृतोपजीवी था,
पर तुमने
पर्णहरिम का
संचार कर
मुझमे
जीवन लालसा
पैदा की  I
खाद पानी
क्या दिया कि
मेरी रगों में दौड़ते
पर्णहरिम ने
सूरज की गर्मी को
कैद कर लिया
और मैं ........
स्वपोषी  हो गया
ये कैसा परिवर्तन!
मैं चकित था I
                    - सिद्धांत  

Friday 10 February 2012

Tagged under:

बीज बनूँ







एक बीज बनूँ
और सुप्त रहूँ
धरती में 
फिर वर्षा की 
पहली बूंदों से 
सिंचित हो 
मैं उपजूं  
फिर सूरज की  
गर्मी में तप 
मैं निखरूं 
और सीमाओ पर 
खड़ा सजग 
प्रहरी बन 
देश काल पर 
मर मिट जाऊं 
एक बीज बनूँ 
और सुप्त रहूँ 
धरती में 
फिर वर्षा की
पहली बूंदों से 
सिंचित हो मैं उपजूं II 
                                 -सिद्धांत 
Tagged under:

आसमान







वह खोजता 
आसमान 
पर उसे न मिला 
वो तो 
धुएं से ढँक गया 
इमारतों में छुप गया 
प्रकृति का 
नीला आसमान 
आज काला हो गया I 
वह खोजता 
आसमान 
पर उसे न मिला 
आसमान 
गाँव में 
गली गली है बस रहा 
आसमान 
तंग सा 
शहर का सिमट रहा 
आसमान 
अब कहाँ रह गया ?
प्रकृति का 
नीला आसमान 
आज काला हो गया  I
                                    -सिद्धांत 

Wednesday 8 February 2012

Tagged under:

अमरबेल







दोगला इंसान, 
जैसे अमरबेल, 
अमरबेल, 
लिपट, 
स्नेह तो दर्शाती है, 
पौधों से, 
पर खींच लेती है, 
अपने चूश्कांगो द्वारा, 
जीवन का रस 
अमरबेल, 
पौधे को, 
बढने नहीं देती, 
फूलने नहीं देती, 
फलने नहीं देती, 
और छीन लेती है,
उससे, 
उसका सब कुछ. 
                 -सिद्धांत 

Tuesday 7 February 2012

Tagged under:

मशीनी मानव







हारा हुआ,
थका सा,
कुछ ऐसा,
आज का मानव 
शांति को तरसता, 
अंतर्द्वंद में झूलता,
किस्मत पर रोता, 
कुछ  ऐसा,  
आज का मानव, 
मशीनी मानव I   
भावहीन, 
दयाहीन, 
पत्थरदिल, 
बेजान,  
व्यस्तता में डूबा, 
भौतिकता में फंसा, 
आत्मिक सुख से दूर,
कुछ ऐसा,
आज का मानव, 
मशीनी मानव I 
                      -सिद्धांत 

Monday 6 February 2012

Tagged under:

राजनीति








राजनीति,
एक प्रदूषित क्षेत्र,
जहाँ, 
एक श्वेत कपोत भी, 
काक नजर आता है,
और, 
खो जाता है, 
स्याह से गलियारों में,
जैसे काजल, 
कोयले में छिप जाती है I
खो जाता है,
उसका अस्तित्व,
उसका स्वाभिमान,
खो जाता है,
उसका ईमान,
उसकी भक्ति,
जैसे, 
रेगिस्तान की, 
धूल भरी आँधियों में, 
वृक्ष से गिरा पत्ता,
खो जाता है II
                 - सिद्धांत 

Saturday 4 February 2012

Tagged under:

रात

रात, 
क्यों काली होती है? 
क्यों नहीं होती उसमे, 
आकाश की नीलिमा,  
पौधों की हरीतिमा, 
सूरज की लालिमा 
और 
सतरंगी इन्द्रधनुष 
रात, 
क्यों गुमसुम होती है? 
क्यों नही होती उसमे, 
भंवरो की गुंजन,
बच्चों की किलकारियां, 
गाय का रम्भाना 
और 
खेतों में गाते किसान के गीत I I
रात, 
क्यों निर्जीव सी है? 
क्यों नहीं होती उसमे, 
तितली सी हलचल, 
चिडियों की फडफड, 
और कुलांचे भरते हिरन  
रात,
रात ऐसी क्यों होती है   ? 
                                                     -सिद्धांत

Tagged under:

एक सफ़ेद बादल का टुकड़ा

एक सफ़ेद 
बादल का टुकड़ा,
रूई सा कोमल,
भंवरों सा चंचल, 
विचरता है,
क्षितिज  के 
एक सिरे से,
दूसरे सिरे तक,
नापता है, 
आकाश की चौड़ाई को, 
सेंटीमीटर में,
ढक लेना चाहता है, 
संपूर्ण गगन को,
अपनी कोमल देह से,  
एक सफ़ेद 
बादल का टुकड़ा I
गुजरता है, 
अक्सर मेरी छत से, 
मैं उसे समेटना चाहता हूँ,  
खुद में, 
पर वो मेरी पकड़ से दूर,
चला जाता है बहुत दूर,
एक सफ़ेद 
बादल का टुकड़ा I
बर्फ सा सफ़ेद,
कुहरे सा नम,
ढक लेता है चाँद को,
और  सतरंगी हो इठलाता है,
मुस्कुराता है
एक सफ़ेद 
बादल का टुकड़ा I
                                         सिद्धांत 
Tagged under:

दो किनारे








सुना है,
कि दो किनारे, 
कभी मिलते नहीं I
मगर एक पुल है,
जो उन्हें जोड़ता है,
अपनेपन का,
एहसास दिलाता है I
तुमने देखीं होंगी,
कई कश्तियाँ,  
पानी पर उतराते हुए,
एक किनारे से,
दूसरे किनारे तक, 
जाते हुए I
फिर ऐसा क्यों है किताबों में,
कि दो किनारे,
कभी मिलते नहीं? 
माना, 
नदी का उफान, 
किनारों की दूरियां,  
बढ़ा  देता है I 
मगर कश्तियाँ तो, 
फिर भी चलती  हैं I 
दूर किसी किनारे से,
आती जलकुम्भी,  
एक दूजे  किनारे ठहरती है I
फिर ऐसा क्यों है
किताबों में, 
कि दो किनारे 
कभी मिलते नहीं?
                                           - सिद्धांत 
Tagged under:

भाग्यरेखा








रंगहीन स्याही से
मैंने लिखा है, 
कई बार
नाम उसका I
समंदर किनारे,
रेत के फर्श पर,
उंगलियों से खोदकरI
पर हर बार
लहरे आती रही,
और मिटाती रही,
उन खुदे अक्षरों  को,
और मैं लिखता रहा
बार बार अविराम I
आज भी
कोई लहर आएगी, 
और मिटा जाएगी
मेरे सामने,
मेरी ही खिंची
भाग्यरेखा को,
और मैं ठगा सा,
उन धुले अक्षरों में ,
खुद को तलाशने,
किसी पुरातत्ववेत्ता की तरह,
समां जाउगा
गहरे तक II   
                                  - सिद्धांत 
Tagged under:

व्यूह रचना








व्यूह रचना
कर रहा
वह कौन? 
आज फिर
होनी है, 
महाभारत धरा पर।
कौरवोँ और पाण्डवोँ
के पाट मेँ,
पिस रही
जनता बराबर। 
आज शायद हो,
महाभारत धरा पर।
गर्भ मेँ अभिमन्यु, 
व्यूह कौन तोड़े? 
बिक रहे हैँ कृष्ण, 
गीता कौन बोले? 
धर्म का आसन बिछाये, 
सत्य चुप है । 
बोलबाला झूठ का,
अब हर तरफ है।
कौन छेड़े युद्द? 
यह प्रश्न आकुल। 
उत्तरोँ का दोष क्या, 
जब प्रश्न है चुप।।
                                   - सिद्धांत