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Tuesday, 10 December 2019

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नमक





 तुम्हारी आंखो के
खारे पानी से
बना नमक
अब मेरी रगों में
बहता है .....
जो तुम पर आंच आए
तो नमक बोल पड़ता है॥
                              

                                      सिद्धान्त
                                     दिसम्बर 09, 2019
                                     प्रातः 9:30 बजे

Wednesday, 25 September 2019

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वैश्यायें






वैश्यायें
शहर नहीं जातीं,
उल्टे शहर
वैश्याओं के पास
आया करते हैं।
चूंकि,
शहरों को गुमान है.......
तो स्खलन होने तक
निचोड़ी जाती है
 वैश्यायें।
सुबह तड़के ही
शहर लौट जाते हैं
अपनी ठौर....
साफ, स्वच्छ शहर,
वैश्याओं को
नतिकता पढ़ाते हैं ,
कालिख मे सनी वैश्यायें,
न मरती हैं,
न जी ही पाती हैं ॥
                                             सिद्धान्त
                                            सितम्बर 26, 2019
                                            रात्रि 10:00बजे

Tuesday, 28 November 2017

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जायज़






कहानियों में
सब  जायज है,
कहानियों में
जायज़ हैं
कर्ज में डूबते
किसान,
और यह भी
कि एक रोज
दिल्ली सिंहासन के
विरुद्ध 
कर दे  वो
किसान क्रान्ति,
कहानियों में
जायज़ है
कि कायम हो
अँधेरा .....
कहानियों में
जायज़ है
कि एक दिन
भ्रष्टाचार के
विरोध में
मैं अपने कमरे में
फंदे से लटक जाऊँ.....
कहानियों में
सब  जायज है।।
                                      - सिद्धान्त
                                         नवम्बर २८, २०१७
                                        रात्रि  ८:०० बजे

Sunday, 26 November 2017

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दीन और ईश्वर







कुछ इन्साफ पसन्द
लोगों  ने
कल रात
उसे 
सूली पर टाँग  दिया।
सुना है,
वो बदचलन इंसान था,
उसे यकीन था 
तुम्हारे दीन और ईश्वर
दोनों एक ही है।
अब ये
अल्लाह और भगवान वाले ही
तय करें
कि उसे
जलाया जाये
या दफनाया जाये........
मेरे मुल्क में
अब ये आम बात है।।

                                        - सिद्धान्त
                                        नवम्बर २६, २०१७
                                           रात्रि ८:३०

Saturday, 11 November 2017

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मृत्यु





घड़ी की सुईयों
के साथ,
मैं बढ़
चला हूँ,
मृत्यु की ओर,
मृत्यु जैसे
ठहरा हुआ समुद्र,
मृत्यु जैसे
ठण्डी बर्फ..............
एक रोज
मृत्यु में झाँककर,
पढूंगा मैं
अपनी आत्मकथा ....
पाप और पुण्य
से परे,
मैं देखूंगा
मृत्यु के उस पार
जीवन विन्यास ....
                       - सिद्धान्त
                         नवंबर १२, २०१७
                         रात्रि ०१:१७ 

Friday, 3 November 2017

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तुम्हारी तस्वीर






एक रोज
मेरी सारी कवितायेँ
पंख लगा
उड़ गई,
बच गया तो
कागज का कोरापन,
देर रात,
मैंने उस
कोरेपन पर
तुम्हारी तस्वीर
उकेरी है,
सुबह
जब रंग पनपेंगे,
एक मुठ्ठी रंग
मैं,
तुम्हारी तस्वीर पर
डाल दूंगा।
अब जब जब
तुम्हारी याद
आयेगी,
मैं तुम्हारी
यही तस्वीर
निहारूँगा,
सुनो कि
मेरे मन के
किसी कोने में,
तुम अब भी
बाकी हो......

             - सिद्धांत
             अक्टूबर  ३०,२०१७
             ४:१३ पी. एम.

Friday, 22 September 2017

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अंधभक्ति .......








वो,
शब्दों से खेलता है,
चाशनी में लिपटे
उसके शब्द
तुम्हें आकर्षित करते हैं,
और तुम
चीटियों के माफिक
खींचे चले आते हो,
वह सम्मोहन करता है 
तुम सम्मोहित हो जाते हो,
और कुछ  इस तरह 
वह सत्ता पर 
काबिज हो जाता है
विश्वास है मुझे,
एक रोज 
जब उसका सम्मोहन कम  होगा 
वह चाशनी में लिपटे 
कुछ और शब्द 
फेंक देगा,
तुम फिर 
चीटियों के माफिक 
खींचे चले आओगे

                               - सिद्धान्त 
                                 22 सितंबर, 2017 
                                 7 :55  पी. एम.

 



Tuesday, 20 January 2015

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संतति







एक और रोज
वो आखिरी परिंदा भी उड़ गया,
रह गई पीछे
तो बस एक सूखी शाख
शाख से गिरे पत्ते
और पत्तों के
जालिकावत शिरा-विन्यास.....
इन सबके बीच
बच गया थोड़ा मैं
बच गयी थोड़ी तुम
और बच गया
हमारे बीच एक ठहराव,
मैं रोज़  उस ठहराव मे
कंकड़ फेकता हूँ,
ताकि किसी रोज पैदा हो लहर
और बदले हमारे आस-पास की आबोहवा.....
एक रोज आरामकुर्सी पर बैठ
मैं ये कहानी
अपनी संतति को दूंगा । ।

                                 - सिद्धान्त
                                  जनवरी 21, 2015
                                   

Saturday, 18 January 2014

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प्रयोगशाला







न्यूटन और आर्किमिडीज की
प्रयोगशालायें
क्रमशः
और विकसित हो
एक रोज इंसान को
चाँद तक ले जाती हैं,
धरती पर पिंकी को
स्माइल पिंकी बनाती हैं,
इन सबके बीच
वैज्ञानिक ईश्वर को
पछाड़ने की होड़ रखते हैं,
कपाटों में बंद ईश्वर
विज्ञानिओं की
हद तय करते हैं,
भीड़ भक्तिभाव से
ईश्वर का ध्यान करती है,
सहसा नेपथ्य से
आवाज आती है
प्रयोगशालाओं से आगे
दुनियाँ और भी है.……
पर्दा गिर जाता है ॥

                     - सिद्धांत
                       जनवरी १८, २०१४
                       रात्रि ११. ३ ०  पी. एम. 

Friday, 20 September 2013

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अक्स







घड़ी से गिरते
एक वक्त में
मैंने कैद कर लिया
तुम्हारा अक्स,
ठीक उसी रोज़
जब अमीबा ने किया था
पहला द्विगुणन
और विकास क्रम में बनी थी
पहली पादप कोशिका ..............
उसी रोज़
मैंने टांग दिया था
तुम्हारा अक्स
मेरी खिड़की से झाँकते
क्षितिज पर,
अब जब भी रात होती है
तुम्हारा अक्स चमक उठता है,
तुम्हारे प्रकाश से प्रकाशित
मेरे कक्ष के एक कोने में
मैं अब भी तुम पर
कहानियां गढ़ता  हूँ,
सुनो कि तुम अब भी
मेरी कहानियो में जिन्दा हो ।।

                                                  - सिद्धान्त
                                                सितम्बर 15, 2013
                                                   रात्रि 11:30        

Monday, 29 July 2013

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वेश्याएं







यहोवा ने यद्यपि
आदम और ईव ही रचे थे,
पर एक रोज आँख बचाकर
आदम ने वेश्याएं गढ़ दीं,
क्रोधित यहोवा कुछ न कर सके
आदम ने रोजी के सवाल जो रख दिए
बेफिक्र आदम
मोल -भाव करता रहा.…….
वेश्याएं बेचता रहा।
यूँ तो, कस्बों की औरतों को
पता था सब कुछ,
पर ज्यादातर समय वे चुप ही रहीं,
स्वार्थी औरतें जानती थीं
कि वेश्याओं की माँघ नहीं होती,
इसलिए उनके कस्बाई घर
सलामत रहे।
एक रोज़ वेश्याओं के बाल 
सिन्दूरी हो गए,
एक रोज़ उनके भारी पैर
लोगों को चुभ गए,
एक रोज़ वो जानने लगीं आदम का सच
उस  रोज़  यहोवा ग्लानि से भर गए ।।
                                     
                                                    - सिद्धान्त
                                                  जुलाई 29, 2013
                                                    रात्रि 10:35 

Friday, 19 July 2013

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नमक (भाग-2)








बोलीविया के
आगे का सच
बस इतना ही था,
कि तुम बादल बन
बरसते रहे.........
और मेरा नमक
तुममे घुलता रहा।
मेरी बहुत खारी
झील में,
हमारे प्रेम के सिवा,
फिर कुछ न पनपा॥
                                         - सिद्धांत
                                       जुलाई 19, 2013
                                       रात्रि 11:07 

Saturday, 29 June 2013

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नमक (भाग-1)







मैं
बोलीविया की
एक झील था,
झील में घुला
नमक
मेरे शब्द थे,
तुम पानी थे
जो उड़ गया.......
अब मेरे अंदर का
नमक
मीलों तक
पसरा है,
मेरी कवितायें
मेरे नमक का
हक़ अदा कर
रही हैं॥


                               - सिद्धान्त
                               

Friday, 21 June 2013

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अनबन






एक रोज़
जो तुमने कहा था
कि फबते नहीं
रंग तुम पर,
बस उसी रोज से
रंगों से मेरी
अनबन है। 
अब एक मैं हूँ
तुम हो और
स्याह सब कुछ,
रात
मेरी कविताओं के
जंगल से  
डरावनी आवाज़े 
आती हैं॥

                         - सिद्धांत 
                       जून 20, 2013  

Friday, 7 June 2013

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अलविदा







तुम्हारी
यादों के पुलिंदे
और एक ख़त
मेरी टाँण  पर
रखे हैं,
उसी टाँण पर
दाहिनी तरफ
तुम्हारे
कुछ मुट्ठी भर
गीत पड़े हैं,
आज जब
पानी बरसेगा
तो तुम्हारे
ख़त की नाव में
मैं वो पुलिंदे
तुम्हें भेज दूंगा।
सुनो.......
देर रात
अपनी खिड़की से
जब मैं
तुम्हारे गीत
गुनगुनाऊँ............
अपनी मुडेर पर आकर
तुम वो गीत भी
ले लेना।।

                                   - सिद्धांत
                                   जून ६ , २ ० १ ३
                                    रात्रि १ .३ ०

Tuesday, 19 March 2013

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टरमीटोमाईसिस







श्वेत मशरूम
टरमीटोमाईसिस
उगाने को,
दीमकों ने
बनाई थीं बांबियां
आम के बाग़ में,
उन्हीं बाँबियों की
एक कोठरी में
जमा थे कुछ शाख पत्ते
और एक जिन्न,
जब तड़के
बादल गरजते थे
तो खिल उठते थे
खिड़कियों से
लम्बी डंडियों वाले
श्वेत खुम्ब,
सुना है...........
जब से चोरी होने लगे हैं
टरमीटोमाईसिस
नाराज दीमकों ने
मशरूम उगाने
बंद कर दिए।।
                                     -- सिद्धांत
                                    मार्च 1 9 , 2 01 3


Saturday, 10 November 2012

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तुम्हारे लिए







अभी कल ही की बात है
जब मैंने बोये थे
कुछ आखिरी शब्द
कागजों पर
सिलसिलेवार क्रम में,
और अब मेरे पास
तुम्हें देने को
कवितायेँ नहीं।
वैसे भी,
तुम पर कुछ लिखना
कितना कठिन है न,
जब कि तुम
इतने भी सुन्दर नहीं
कि बन न सके
तुम पर एक कविता।
और अब
सोचता हूँ कि
तुम पर
कुछ न कुछ
गढ़ने को
चुनने हैं अभी
कितने और शब्द,
इसी उहापोह  में
कविता जैसी ही ये कविता
केवल तुम्हारे लिए।।

                                  - सिद्धान्त
                                  नवम्बर 10,2012

Monday, 24 September 2012

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जिराफ







सुदूर
वर्षा वन में
खिलते हैं
चटकीले रंगों वाले
मशरूम,
और बहती है
एक लच्छेदार नदी,
वहीँ
चौड़े पत्तों वाले
पेड़ों तले
पलती है,
ऊँचें जिराफों की
नयी प्रजाति।
डार्विन  के
जिराफों से उलट
पेचीदे विकास पथ  वाले
वो..............
नहीं मानते
योग्यतम की  उत्तरजीविता
भत्तों  पर पोषित
ये जिराफ
अब और ऊँचे
हो चले हैं ।।
                                           
                                     - सिद्धांत
                                   23 सितंबर , 2012

Thursday, 21 June 2012

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तुम्हारी यादें







राइनोसोरस  की तरह ही ,
अब तुम्हारी यादें भी
संरक्षित हैं.............
ताख पर रखे 
एक पुराने से 
संदूक मे
कमरे का वह कोना 
आज भी
तुम्हारे ही नाम से  
आरक्षित है  ।  
उन्हीं यादों की 
लाल आंकड़े वाली 
किताब में 
दर्ज है अब भी 
मेरे कई सपने 
गीत और कुछ
अधूरी कविताये,
और वही 
सहेज रखी हैं मैंने 
तुम्हारी कांच की चूड़ियाँ 
मेहदी, टिकली, पायल,
और आँखों का काजल.....................
कई दिन हो गये 
गया नहीं वहां

                                        - सिद्धांत 
                                          जून 20, 2012  

Thursday, 26 April 2012

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हिन्दुस्तान







ये हिन्दुस्तान है,
यहाँ बोफोर्स घोटाले 
से ज्यादा लोगो को 
शर्मा जी के अफेयर 
में इंटेरेस्ट है,
यूँ तो शाम को
चाय की चुस्कियों 
के साथ 
बोफोर्स पर 
बाते तो होती हैं,
पर अगली ही सुबह
बीवी-बच्चे
स्कूल-ऑफिस
बॉस-फाइल
राशन-पानी
सब्जी-भाजी
बिजली-बिल
क्रेडिट-डेबिट
में घुट सी 
जाती है, 
ये हिंदुस्तान है
यहाँ  टू-जी 
से ज्यादा लोगो को 
बिग-बी में इंटेरेस्ट है.

                                         -सिद्धांत