एक सफ़ेद
बादल का टुकड़ा,
रूई सा कोमल,
भंवरों सा चंचल,
विचरता है,
क्षितिज के
एक सिरे से,
दूसरे सिरे तक,
नापता है,
आकाश की चौड़ाई को,
सेंटीमीटर में,
ढक लेना चाहता है,
संपूर्ण गगन को,
अपनी कोमल देह से,
एक सफ़ेद
बादल का टुकड़ा I
गुजरता है,
अक्सर मेरी छत से,
मैं उसे समेटना चाहता हूँ,
खुद में,
पर वो मेरी पकड़ से दूर,
चला जाता है बहुत दूर,
एक सफ़ेद
बादल का टुकड़ा Iबर्फ सा सफ़ेद,
कुहरे सा नम,
ढक लेता है चाँद को,
और सतरंगी हो इठलाता है,
मुस्कुराता है
एक सफ़ेद
बादल का टुकड़ा I
- सिद्धांत
- सिद्धांत
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