एक बीज बनूँ
और सुप्त रहूँ
धरती में
फिर वर्षा की
पहली बूंदों से
सिंचित हो
मैं उपजूं
फिर सूरज की
गर्मी में तप
मैं निखरूं
और सीमाओ पर
खड़ा सजग
प्रहरी बन
देश काल पर
मर मिट जाऊं
एक बीज बनूँ
और सुप्त रहूँ
धरती में
फिर वर्षा की
पहली बूंदों से
सिंचित हो मैं उपजूं II
-सिद्धांत
0 comments:
Post a Comment