सुना है,
कि दो किनारे,
कभी मिलते नहीं I
मगर एक पुल है,
जो उन्हें जोड़ता है,
अपनेपन का,
एहसास दिलाता है I
तुमने देखीं होंगी,
कई कश्तियाँ,
पानी पर उतराते हुए,
एक किनारे से,
दूसरे किनारे तक,
जाते हुए I
फिर ऐसा क्यों है किताबों में,
कि दो किनारे,
कभी मिलते नहीं?
माना,
नदी का उफान,
किनारों की दूरियां,
बढ़ा देता है I
मगर कश्तियाँ तो,
फिर भी चलती हैं I
दूर किसी किनारे से,
आती जलकुम्भी,
एक दूजे किनारे ठहरती है I
फिर ऐसा क्यों है
किताबों में,
किताबों में,
कि दो किनारे
कभी मिलते नहीं?
कभी मिलते नहीं?
- सिद्धांत
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