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Saturday, 4 February 2012

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दो किनारे








सुना है,
कि दो किनारे, 
कभी मिलते नहीं I
मगर एक पुल है,
जो उन्हें जोड़ता है,
अपनेपन का,
एहसास दिलाता है I
तुमने देखीं होंगी,
कई कश्तियाँ,  
पानी पर उतराते हुए,
एक किनारे से,
दूसरे किनारे तक, 
जाते हुए I
फिर ऐसा क्यों है किताबों में,
कि दो किनारे,
कभी मिलते नहीं? 
माना, 
नदी का उफान, 
किनारों की दूरियां,  
बढ़ा  देता है I 
मगर कश्तियाँ तो, 
फिर भी चलती  हैं I 
दूर किसी किनारे से,
आती जलकुम्भी,  
एक दूजे  किनारे ठहरती है I
फिर ऐसा क्यों है
किताबों में, 
कि दो किनारे 
कभी मिलते नहीं?
                                           - सिद्धांत 

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